हाल ही में मुंबई में एक ऐसा तलाक हुआ, जिसने पारंपरिक सोच को चैलेंज किया और मीडिया में चर्चा का विषय बन गया। यह मामला खासतौर पर इसलिए सुर्खियों में आया क्योंकि इसमें पत्नी ने अपने पति को करीब 10 करोड़ रुपये की एलिमनी दी, जबकि आमतौर पर तलाक के मामलों में यह अपेक्षा की जाती है कि पति पत्नी को मेंटिनेंस और एलिमनी देंगे। इस घटना ने यह साबित किया कि तलाक के मामलों में एलिमनी की प्रक्रिया को लेकर गलतफहमियाँ और सामाजिक धारणाएं बहुत आम हैं। इसलिए यह जानना महत्वपूर्ण हो जाता है कि भारत में तलाक के मामलों में एलिमनी के लिए कौन-कौन से कानूनी प्रावधान हैं और किसे किस स्थिति में यह धनराशि मिल सकती है।
भारत में तलाक की प्रक्रिया और एलिमनी का निर्धारण विभिन्न कानूनी धाराओं और नियमों के तहत किया जाता है। खासकर हिंदू मैरिज एक्ट के तहत तलाक और एलिमनी के मामलों में कुछ महत्वपूर्ण प्रावधान हैं, जो पति और पत्नी दोनों को समान अधिकार प्रदान करते हैं। हालांकि, इसके बावजूद अधिकांश लोग यह मानते हैं कि एलिमनी का भुगतान सिर्फ महिला को ही करना होता है, जबकि कानूनी दृष्टिकोण से यह मामला कुछ अलग है।
हिंदू मैरिज एक्ट और तलाक से जुड़ी महत्वपूर्ण धाराएं
भारत में तलाक से संबंधित कानून विभिन्न धार्मिक संप्रदायों के आधार पर होते हैं। हिंदू समुदाय के लिए तलाक से संबंधित कानून हिंदू मैरिज एक्ट 1955 के तहत आते हैं। इस कानून में तलाक, मेंटिनेंस और एलिमनी से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण प्रावधान किए गए हैं, जो यह सुनिश्चित करते हैं कि दोनों पार्टियों को न्याय मिले।
हिंदू मैरिज एक्ट की धारा-9, जिसे ‘रेस्टीट्यूशन ऑफ कॉन्जुगल राइट्स’ (RCR) कहा जाता है, यह सुनिश्चित करती है कि यदि पति और पत्नी बिना किसी ठोस कारण के एक-दूसरे से अलग रहते हैं, तो किसी भी पक्ष को कोर्ट में जाने का अधिकार होता है। कोर्ट इस मामले में आदेश दे सकता है कि दोनों एक साथ रहें। यदि कोर्ट का आदेश न माना जाए, तो तलाक की प्रक्रिया शुरू की जा सकती है। यह धारा केवल आपसी सहमति से होने वाले तलाक में लागू नहीं होती है। इसके अलावा, कोर्ट दोनों पक्षों की संपत्ति का आकलन करने का भी आदेश दे सकती है, जिससे यह तय किया जा सके कि तलाक के बाद दोनों को क्या संपत्ति या धनराशि मिलनी चाहिए।
एलिमनी और मेंटिनेंस की कानूनी स्थिति
हिंदू मैरिज एक्ट की धारा-25 के तहत मेंटिनेंस और एलिमनी का प्रावधान किया गया है, जिसमें पति और पत्नी दोनों को अधिकार दिया गया है। इसका मतलब यह है कि जब एक पक्ष आर्थिक रूप से असहाय होता है, तो उसे दूसरे पक्ष से एलिमनी या मेंटिनेंस मिल सकता है। इसके तहत यह आवश्यक नहीं है कि यह केवल महिला को ही मिले, बल्कि पुरुष भी अपनी पत्नी से एलिमनी की मांग कर सकते हैं, विशेष रूप से जब उनकी आय का कोई साधन न हो या जब उनकी आय पत्नी के मुकाबले कम हो।
यह कानूनी प्रावधान यह दर्शाता है कि तलाक के मामलों में केवल महिला को ही एलिमनी देने की अवधारणा सही नहीं है। जब पति की आय पत्नी के मुकाबले कम हो या वह आर्थिक रूप से कमजोर हो, तो उसे भी पत्नी से एलिमनी मिलने का पूरा हक है। हालांकि, इस प्रकार के मामले बहुत कम होते हैं, और आमतौर पर पति को ही पत्नी को मेंटिनेंस या एलिमनी देने की जिम्मेदारी निभानी पड़ती है।
जब औरतों को देना होता है पैसा
तलाक में अक्सर यह देखा जाता है कि पुरुष अपनी पत्नी से एलिमनी की मांग करते हैं, लेकिन कुछ मामलों में महिला को भी अपने पति को एलिमनी देने का आदेश दिया जाता है। यह तब होता है जब महिला की आर्थिक स्थिति काफी मजबूत हो और पुरुष की आय कम हो या वह आर्थिक रूप से असहाय हो। ऐसे मामलों में महिला को भी पति को आर्थिक सहायता देने का आदेश दिया जा सकता है, जैसे कि हाल के मुंबई के मामले में हुआ। इसमें पत्नी ने अपने पति को करीब 10 करोड़ रुपये की एलिमनी दी, जो कि एक असामान्य घटना है, लेकिन कानूनी रूप से यह संभव है।