सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा कि एक बंधक (mortgage) को कब्जे में रहने की अनुमति देना यह नहीं दर्शाता कि लेन-देन एक ‘साधारण बंधक’ (simple mortgage) है, अगर विलेख (deed) में यह निर्दिष्ट किया गया हो कि निर्धारित समय के भीतर संपत्ति को छुड़ाने में बंधककर्ता की चूक के कारण संपत्ति को सशर्त बिक्री के रूप में हस्तांतरित किया जाएगा। यह निर्णय बंधक विलेख के तहत संपत्ति के कब्जे और स्वामित्व के मुद्दों पर महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश प्रदान करता है।
यह मामला न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति प्रसन्ना बी. वराले की खंडपीठ द्वारा सुनवाई किया गया, जिसमें एक नागरिक अपील पर फैसला सुनाया गया। यह अपील उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ दायर की गई थी, जिसने ट्रायल कोर्ट के फैसले को सही ठहराया था। ट्रायल कोर्ट ने यह निर्णय लिया था कि बंधक संपत्ति को छुड़ाने के लिए वादी (claimant) को अनुमति दी जाए, जो बंधक विलेख के तहत गिरवी रखी गई थी।
क्या था मामला?
यह मामला 1990 का है, जब वादी ने प्रतिवादी को ₹75,000 में एक संपत्ति गिरवी रखी थी। इस गिरवी के लिए एक समझौता हुआ था, जिसमें कहा गया था कि तीन साल के भीतर ₹1,20,000 (ब्याज सहित) चुकाए जाएंगे। बंधक विलेख में एक खंड भी था, जिसमें कहा गया था कि यदि निर्धारित अवधि में भुगतान नहीं किया गया, तो बंधक संपत्ति पूरी तरह से बिक्री में बदल जाएगी।
1993 में, वादी ने ₹1,20,000 की राशि चुकाकर बंधक को छुड़ाने का प्रयास किया। हालांकि, प्रतिवादी ने यह भुगतान स्वीकार करने से इनकार कर दिया, यह दावा करते हुए कि विलेख की शर्तों के अनुसार वादी द्वारा निर्धारित समय के भीतर राशि का भुगतान नहीं करने के कारण, यह बंधक अब सशर्त बिक्री में बदल चुका था।
इस स्थिति को लेकर वादी ने एक मुकदमा दायर किया, जिसमें बंधक के मोचन की मांग की और प्रतिवादी के स्वामित्व का दावा अमान्य करार देने की कोशिश की।
ट्रायल कोर्ट और उच्च न्यायालय का फैसला
ट्रायल कोर्ट ने वादी के पक्ष में फैसला सुनाया और माना कि बंधक को बिक्री में बदलने की शर्त को ‘मोचन की इक्विटी पर रुकावट’ के रूप में देखा और वादी को प्रतिवादी को ₹1,20,000 का भुगतान करने की अनुमति दी। उच्च न्यायालय ने भी इस फैसले को बरकरार रखा, जिसके बाद प्रतिवादी ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने अपील पर सुनवाई करते हुए ट्रायल कोर्ट और उच्च न्यायालय के फैसले को खारिज कर दिया। कोर्ट ने यह निर्णय लिया कि लेन-देन एक सशर्त बिक्री द्वारा बंधक के रूप में माना जाएगा। इसके तहत, बंधक विलेख में स्पष्ट रूप से यह उल्लेख किया गया था कि निर्धारित समय के भीतर भुगतान में विफलता पर संपत्ति का हस्तांतरण सशर्त बिक्री के रूप में होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बंधक विलेख में स्पष्ट रूप से यह शर्त थी कि यदि वादी निर्धारित समय में राशि का भुगतान नहीं करता है, तो बंधक संपत्ति को पूर्ण बिक्री में बदल दिया जाएगा। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि वादी का लगातार कब्जा, जो एक अनुमेय कब्जा (permissive possession) था, लेन-देन की सशर्त बिक्री के होने की संभावना को नकारता नहीं है।
इसके अलावा, कोर्ट ने यह भी कहा कि ट्रायल कोर्ट और उच्च न्यायालय ने बंधक विलेख की शर्तों और कब्जे की प्रकृति पर सही ढंग से विचार नहीं किया। कोर्ट ने यह निष्कर्ष निकाला कि बंधक विलेख के सभी तत्व, जैसे कि भुगतान की विफलता पर सशर्त बिक्री का होना, पूरी तरह से धारा 58(c) के तहत ‘सशर्त बिक्री द्वारा बंधक’ के रूप में आते हैं।
बंधक विलेख और कब्जे की प्रकृति
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि बंधक विलेख के निष्पादन के बाद वादी द्वारा भूमि का कब्जा अनुमेय था और इसका उद्देश्य केवल संपत्ति की सुरक्षा था, न कि पूर्ण स्वामित्व प्रदान करना। कोर्ट ने यह निर्णय लिया कि वादी का कब्जा किसी अतिरिक्त अधिकार का संकेत नहीं था और न ही यह लेन-देन की सशर्त बिक्री की संभावना को नकारता था।
सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, ‘अनुमेय कब्जा’ का अर्थ यह नहीं है कि बंधक विलेख में उल्लिखित शर्तों के तहत बंधक को स्वीकृत किया गया था। यह केवल एक व्यावहारिक व्यवस्था थी, ताकि बंधककर्ता को अपनी संपत्ति के लिए सुरक्षा मिल सके।