सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए हिन्दू महिलाओं के संपत्ति अधिकारों से जुड़े विवादित मुद्दे को सुलझाने के लिए बड़ा कदम उठाया है। यह मुद्दा हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के तहत महिलाओं के अधिकारों की व्याख्या से संबंधित है, जो छह दशकों से लंबित है। प्रश्न यह है कि क्या एक हिन्दू पत्नी अपने पति द्वारा वसीयत में दी गई संपत्ति पर पूर्ण स्वामित्व अधिकार रख सकती है, भले ही वसीयत में कुछ प्रतिबंध लगाए गए हों?
उच्चतम न्यायालय का ऐतिहासिक निर्णय
न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और संदीप मेहता की पीठ ने सोमवार को इस विवाद को सुलझाने के लिए एक बड़ी पीठ के पास भेजने का निर्णय लिया। उन्होंने कहा कि यह मामला हर हिन्दू महिला के अधिकारों, उनके परिवार और देशभर के विभिन्न अदालतों में लंबित मामलों से सीधे जुड़ा हुआ है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का गहरा असर लाखों महिलाओं पर पड़ सकता है, जो अपनी संपत्ति पर स्वामित्व और इसके हस्तांतरण के अधिकार को लेकर असमंजस में हैं।
संपत्ति विवाद की पृष्ठभूमि
यह मामला 1965 में कंवर भान नामक व्यक्ति की वसीयत से जुड़ा हुआ है। वसीयत के अनुसार, उन्होंने अपनी पत्नी को जीवनभर के लिए एक जमीन पर अधिकार दिया, लेकिन यह शर्त रखी कि पत्नी की मृत्यु के बाद संपत्ति उनके उत्तराधिकारियों को वापस मिल जाएगी। पत्नी ने बाद में इस जमीन को बेच दिया और दावा किया कि वह इसकी पूर्ण मालिक हैं।
बेटे और पोते ने इस बिक्री को चुनौती दी, और मामला अदालतों तक पहुंचा। निचली और अपीलीय अदालतों ने 1977 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले तुलसम्मा बनाम शेष रेड्डी का हवाला देते हुए पत्नी के पक्ष में निर्णय दिया। इस फैसले में हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 14(1) को महिलाओं के पक्ष में व्याख्या करते हुए उन्हें संपत्ति पर पूर्ण अधिकार देने की बात कही गई थी।
विरोधाभासी फैसले और कानूनी उलझन
हालांकि, पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने इस व्याख्या से असहमति जताई और 1972 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले कर्मी बनाम अमरु का हवाला दिया। इस फैसले में वसीयत में रखी गई शर्तों को संपत्ति पर अधिकारों को सीमित करने वाला बताया गया था।
यह मामला अब सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा, जहां न्यायमूर्ति पीएन भागवती के तुलसम्मा फैसले में उठाए गए सवालों की पुनः समीक्षा की जा रही है। न्यायमूर्ति भागवती ने धारा 14(1) को प्रगतिशील मानते हुए इसे महिलाओं के अधिकारों को मजबूत करने वाला बताया था, लेकिन उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि यह कानून वकीलों के लिए एक जटिल विषय और वादियों के लिए उलझन भरा बन गया है।
हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 14(1) बनाम धारा 14(2)
हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 14(1) महिलाओं को संपत्ति पर पूर्ण अधिकार देती है। यह प्रावधान उस संपत्ति पर लागू होता है जो महिला के पास उसके जीवनकाल के दौरान आई हो। हालांकि, धारा 14(2) के तहत वसीयत या उपहार में दी गई संपत्ति स्वचालित रूप से पूर्ण स्वामित्व में नहीं बदलती।
सुप्रीम कोर्ट के सामने अब यह सवाल है कि क्या वसीयत में दी गई शर्तें धारा 14(1) के तहत महिलाओं के अधिकारों को सीमित कर सकती हैं। न्यायमूर्ति नरसिम्हा ने कहा कि तुलसम्मा फैसले के बाद दो विचारधाराएं सामने आई हैं। पहली, जो महिलाओं को अधिक अधिकार देती है, और दूसरी, जो संपत्ति अधिग्रहण और हस्तांतरण के तरीके पर जोर देती है।
बड़ी पीठ के पास मामला
सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे को बड़ी पीठ को सौंपते हुए कहा कि इस मामले में कानूनी स्पष्टता अत्यंत आवश्यक है। यह स्पष्ट करना जरूरी है कि क्या वसीयत में दी गई शर्तें महिलाओं के संपत्ति अधिकारों को सीमित कर सकती हैं।
भविष्य में संभावित प्रभाव
यह मामला सिर्फ कानूनी बारीकियों का प्रश्न नहीं है, बल्कि इसका असर लाखों महिलाओं के जीवन पर पड़ेगा। यदि सुप्रीम कोर्ट महिलाओं के पक्ष में निर्णय देता है, तो यह उनकी संपत्ति पर स्वामित्व, उसके उपयोग और हस्तांतरण के अधिकार को मजबूत करेगा।