सुप्रीम कोर्ट ने बाल विवाह को सामाजिक बुराई बताते हुए इसे रोकने के लिए महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश जारी किए हैं। अदालत ने बाल विवाह निरोधक कानून में सजा से बचने के लिए नाबालिगों की सगाई करने की प्रवृत्ति को रोकने की आवश्यकता जताई है। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि फिलहाल सगाई पर कोई कानूनी रोक नहीं है, जिसके कारण यह एक छद्म तरीके से बाल विवाह को बढ़ावा देने का कारण बन सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने बाल विवाह को बच्चों के स्वास्थ्य, विकास और उनके जीवनसाथी को अपनी पसंद से चुनने की स्वतंत्रता का उल्लंघन भी बताया। हालांकि, बाल विवाह निरोधक कानून को विभिन्न पर्सनल लॉ (धार्मिक निजी विधियों) पर लागू किया जाएगा या नहीं, इस पर कोर्ट ने कोई निर्णायक राय नहीं दी है। अदालत ने कहा कि यह मामला अभी संसद में विचाराधीन है।
बाल विवाह निरोधक कानून को लेकर कोर्ट की गंभीर चिंता
सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की पीठ ने यह अहम फैसला 141 पेज के फैसले में दिया है। प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पार्डीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने गैर सरकारी संगठन “सोसाइटी फॉर एनलाइटेनमेंट एंड वालेंटरी एक्शन” (SEVA) की याचिका पर यह फैसला सुनाया। अदालत ने कहा कि बाल विवाह की रोकथाम के लिए सभी पक्षों को मिलकर काम करना होगा और केंद्र सरकार को यह निर्देश दिया कि वह राज्यों को विशेष अधिकारी नियुक्त करने के आदेश दे, जो सिर्फ और सिर्फ बाल विवाह रोकने पर ध्यान केंद्रित करेंगे।
कोर्ट ने कहा कि बाल विवाह रोकने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है और केवल अधिकारियों को नियुक्त करने से यह समस्या हल नहीं हो सकती। इसके साथ ही, अदालत ने यह भी कहा कि इन अधिकारियों के ऊपर अन्य कोई जिम्मेदारी नहीं डाली जाएगी, ताकि वे पूरी तरह से बाल विवाह पर काम कर सकें।
बच्चों की सगाई पर रोक की आवश्यकता
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि बच्चों की सगाई पर कोई कानूनी रोक नहीं होने के कारण इस प्रक्रिया का गलत उपयोग हो सकता है। अदालत ने यह स्पष्ट किया कि बाल विवाह निरोधक कानून में तो सजा का प्रावधान है, लेकिन यदि कोई बाल विवाह से बचने के लिए नाबालिगों की सगाई कर देता है, तो उसे सजा से बचने का रास्ता मिल जाता है। अदालत ने इसे बच्चों के जीवन के अधिकार का उल्लंघन बताया और कहा कि इस प्रकार के कानूनी लूपहोल्स को बंद करना बेहद जरूरी है।
इसके साथ ही, कोर्ट ने अंतरराष्ट्रीय कानून जैसे सीईडीएडब्लू (CEDAW) का हवाला देते हुए कहा कि यह कानून बच्चों की सगाई को खतरनाक मानता है और इसे रोकने के उपायों को जरूरी ठहराता है। अदालत ने कहा कि संसद को बच्चों की सगाई को गैरकानूनी घोषित करने पर विचार करना चाहिए, क्योंकि यह बाल विवाह निरोधक कानून के तहत सजा से बचने का एक तरीका बन सकता है।
बाल विवाह निरोधक कानून की समीक्षा की जरूरत
सुप्रीम कोर्ट ने बाल विवाह निरोधक कानून के प्रभावी कार्यान्वयन पर भी ध्यान दिलाया। अदालत ने कहा कि यह केंद्रीय कानून है और बच्चों के अधिकारों की रक्षा करने के लिए इस पर ध्यान दिया जाना चाहिए। हालांकि, कोर्ट ने इस कानून में कुछ खामियों का भी उल्लेख किया, जो बच्चों के अधिकारों की पूरी तरह से रक्षा नहीं कर पा रहे हैं।
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि वर्तमान में कोई भी पक्ष इस कानून को चुनौती नहीं दे रहा है और न ही इस पर कोई बहस हो रही है। हालांकि, अदालत ने केंद्र सरकार को इस कानून की समीक्षा करने का सुझाव दिया है, ताकि उसमें बच्चों के अधिकारों की पूरी रक्षा की जा सके। कोर्ट ने यह भी कहा कि बाल विवाह निरोधक कानून के कुछ मुद्दे भविष्य में उपयुक्त मामलों में ही निर्धारित किए जाएंगे।
बच्चों की सगाई पर कानूनी प्रावधानों की समीक्षा
बाल विवाह के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है। अदालत ने यह भी संकेत दिया कि यदि बच्चों की सगाई के मामलों में वृद्धि होती है, तो इसे जुविनाइल जस्टिस कानून के तहत कवर किया जा सकता है, और सगाई को भी एक कानूनी अपराध के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।
अदालत ने अंत में यह भी कहा कि इस संबंध में कानून और उसकी प्रक्रिया पर उचित विचार-विमर्श किया जाना चाहिए ताकि भविष्य में इस प्रकार के मामलों में ठोस कदम उठाए जा सकें।
केंद्र सरकार को दिए गए सुझाव
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और संसद को कुछ महत्वपूर्ण सुझाव भी दिए हैं। अदालत ने कहा कि बाल विवाह निरोधक कानून की समीक्षा की जानी चाहिए, खासकर बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा को लेकर। हालांकि, यह भी कहा गया कि यह मुद्दा संसद में विचाराधीन है और आगे चलकर इसमें उचित निर्णय लिया जाएगा।
कोर्ट ने इस बात पर भी जोर दिया कि बाल विवाह के प्रचलन को समाप्त करने के लिए केवल कानूनी उपाय ही पर्याप्त नहीं होंगे, बल्कि समाज के विभिन्न हिस्सों को इस दिशा में जागरूक करना भी जरूरी है।