आजकल प्रोपर्टी विवादों की संख्या तेजी से बढ़ रही है, खासतौर पर परिवार के अंदर। जमीन-जायदाद के बढ़ते दामों के चलते कई बार लोग अपनी संपत्ति सिर्फ बेटों के नाम कर देते हैं, ताकि बेटियों का उसमें कोई हस्तक्षेप न हो। लेकिन बेटियां अब जागरूक हो रही हैं और अपने अधिकारों के लिए अदालत का रुख कर रही हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या बुआ यानी पिता की बहन अपने भतीजों के नाम की गई प्रोपर्टी पर हक का दावा कर सकती है?
भारतीय कानून और बेटियों के अधिकार
भारतीय कानून में बेटों और बेटियों को समान अधिकार दिए गए हैं। पिता की संपत्ति में बेटियों का हिस्सा भी बेटों के बराबर होता है। हालांकि अगर कोई व्यक्ति अपनी संपत्ति अपने पोतों के नाम जिंदा रहते हुए ट्रांसफर कर देता है, तो उसकी बेटियां उस प्रॉपर्टी पर दावा नहीं कर सकतीं।
वहीं अगर व्यक्ति ने वसीयत के जरिए संपत्ति बेटों को दी है और उनकी मृत्यु के बाद यह ट्रांसफर हो गई है, तो बेटियां इसे कोर्ट में चुनौती दे सकती हैं। वसीयत न होने की स्थिति में बेटियों का अपने पिता की संपत्ति पर बराबरी का हक होता है।
स्वअर्जित प्रोपर्टी और वसीयत का महत्व
कानूनी विशेषज्ञों के अनुसार यदि कोई व्यक्ति अपनी मेहनत से कमाई गई संपत्ति को वसीयत के माध्यम से किसी को देता है, तो यह कानूनी रूप से मान्य होती है। लेकिन वसीयत में किसी को संपत्ति से बेदखल करने का कारण स्पष्ट करना आवश्यक है। वसीयत के अभाव में मृतक की संपत्ति उनकी पत्नी, बेटों, बेटियों और मां में समान रूप से बंटती है।
1. क्या बेटियों को पिता की संपत्ति में हक मिलता है?
हां, भारतीय कानून के अनुसार बेटियों को पिता की संपत्ति में बराबर का अधिकार है, बशर्ते संपत्ति की वसीयत बेटों के नाम न हो।
2. क्या वसीयत को कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है?
हां, यदि वसीयत में बेटियों को संपत्ति से बाहर रखा गया हो, तो वे इसे अदालत में चुनौती दे सकती हैं।
3. बिना वसीयत के संपत्ति कैसे बंटेगी?
बिना वसीयत के संपत्ति मृतक के कानूनी उत्तराधिकारियों जैसे पत्नी, बेटे, बेटियों और मां में समान रूप से बंटेगी।
4. क्या बुआ अपने भतीजों की संपत्ति पर दावा कर सकती है?
अगर प्रॉपर्टी भतीजों के नाम ट्रांसफर हो चुकी है और बुआ का हिस्सा पहले ही निपटारा हो गया है, तो बुआ उस पर दावा नहीं कर सकती।
भारतीय प्रॉपर्टी कानून बेटों और बेटियों को समान अधिकार देता है, लेकिन वसीयत और व्यक्तिगत अर्जित संपत्ति के मामले में इसकी व्याख्या भिन्न हो सकती है। बेटियों को अपने हक के लिए जागरूक होना और कानून का सही इस्तेमाल करना बेहद जरूरी है।