संपत्ति का बंटवारा भारतीय परिवारों में अक्सर विवाद का बड़ा कारण बनता है। विशेषकर तब, जब पति ने दो शादियां की हों। इस स्थिति में संपत्ति पर दावा पहली पत्नी, दूसरी पत्नी और उनके बच्चों के बीच उलझन पैदा कर सकता है। खासकर, जब दूसरी शादी की वैधता और उससे जुड़े कानूनी पहलुओं पर सवाल उठते हैं।
हिन्दू मैरिज एक्ट, 1955 और उत्तराधिकार कानून के तहत, पति की संपत्ति पर अधिकार इस बात पर निर्भर करता है कि दूसरी शादी कानूनी रूप से वैध है या नहीं। यदि दूसरी शादी मान्य है, तो दूसरी पत्नी और उनके बच्चों को पति की पैतृक और अर्जित संपत्ति में बराबर का अधिकार मिलता है।
कब दूसरी पत्नी कर सकती है संपत्ति पर दावा?
हिन्दू मैरिज एक्ट, 1955 के तहत, दूसरी पत्नी पति की संपत्ति पर तभी दावा कर सकती है जब उनकी शादी कानूनी रूप से वैध हो। इसका मतलब है कि विवाह के समय, पहली पत्नी के साथ तलाक हो चुका हो या वह जीवित न हो। इन दोनों परिस्थितियों के पूरे होने पर ही दूसरी शादी को वैध माना जाएगा।
अगर शादी वैध है, तो दूसरी पत्नी को पति की संपत्ति पर वही अधिकार मिलता है जो पहली पत्नी को दिया जाता है। इसके साथ ही, उनके बच्चों को भी संपत्ति में बराबर का हिस्सा मिलेगा।
गैर-वैध शादी में भी मिल सकता है हक
यदि दूसरी शादी कानूनी रूप से वैध नहीं है, तो स्थिति बदल जाती है। ऐसी स्थिति में दूसरी पत्नी पति की पैतृक संपत्ति पर दावा नहीं कर सकती। हालांकि, पति की स्वयं अर्जित संपत्ति के मामले में उसे अधिकार मिल सकता है।
अगर पति ने वसीयत (Will) के जरिए अपनी संपत्ति दूसरी पत्नी या उसके बच्चों को देने का प्रावधान किया है, तो वह इसे कानूनी रूप से प्राप्त कर सकती है। इसके विपरीत, यदि पति वसीयत छोड़ने के बिना (निर्वसीयत) मृत्यु को प्राप्त करता है, तो उसकी संपत्ति उत्तराधिकार कानूनों के तहत कानूनी उत्तराधिकारियों के बीच बांटी जाएगी।
दोनों पत्नियों और बच्चों के बीच संपत्ति का विभाजन
भारत में उत्तराधिकार कानून इस बात की गारंटी करता है कि वैध विवाह के आधार पर दूसरी पत्नी को पहली पत्नी के बराबर का दर्जा मिलेगा। इसका अर्थ है कि यदि पति की मृत्यु हो जाती है और उसके पास वसीयत नहीं है, तो उसकी संपत्ति दोनों पत्नियों और उनके बच्चों के बीच समान रूप से विभाजित की जाएगी।
हालांकि, यदि दूसरी शादी अवैध है, तो दूसरी पत्नी को पति की पैतृक संपत्ति का कोई हिस्सा नहीं मिलेगा। फिर भी, यदि पति की स्वयं अर्जित संपत्ति पर उसका कोई दावा बनता है, तो वह इसे प्राप्त कर सकती है।
कानूनी वैधता और धार्मिक पहलुओं का प्रभाव
संपत्ति पर अधिकार तय करने में शादी की कानूनी स्थिति और धार्मिक नियमों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। उदाहरण के लिए:
- हिन्दू कानून: दूसरी शादी तभी मान्य है जब पहली पत्नी के साथ तलाक हो चुका हो या वह जीवित न हो।
- मुस्लिम कानून: मुस्लिम पुरुषों को चार शादियां करने की अनुमति है, जिससे सभी पत्नियों और उनके बच्चों को संपत्ति में हिस्सा मिलता है।
- ईसाई और पारसी कानून: इनमें एक समय में केवल एक शादी मान्य होती है, और दूसरी शादी अवैध होने पर संपत्ति पर दावा नहीं किया जा सकता।
क्या हैं दूसरी पत्नी के लिए न्यायिक समाधान?
यदि दूसरी पत्नी खुद को संपत्ति में अधिकार से वंचित पाती है, तो उसके पास कानूनी समाधान के कई विकल्प हैं। वह न्यायालय में यह दावा कर सकती है कि उसकी शादी वैध है और संपत्ति में उसका हिस्सा है। इसके अलावा, यदि पति ने वसीयत बनाई है, तो उसके आधार पर वह अपने अधिकार की मांग कर सकती है।