नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए निजी संपत्तियों और ‘सार्वजनिक भलाई’ के लिए इनके अधिग्रहण के मुद्दे पर राज्य की शक्ति को सीमित कर दिया है। चीफ जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने बहुमत से फैसला देते हुए कहा कि राज्य सरकारें सभी निजी संपत्तियों को अधिग्रहित नहीं कर सकतीं। यह निर्णय संविधान के अनुच्छेद 39 (बी) के तहत दिया गया, जो सार्वजनिक भलाई के लिए संपत्तियों के अधिग्रहण और पुनर्वितरण पर राज्य की शक्ति को परिभाषित करता है।
इस फैसले के साथ ही 1978 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए एक महत्वपूर्ण निर्णय को पलट दिया गया। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि निजी संपत्ति को सामुदायिक संपत्ति मानने की सीमा को पुनर्परिभाषित किया जाएगा।
अनुच्छेद 39 (बी) और 31 (सी) का पुनर्परिभाषण
सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 39 (बी) के तहत दी गई राज्य की शक्ति पर टिप्पणी करते हुए कहा कि यह अनुच्छेद सार्वजनिक भलाई के लिए संपत्तियों के अधिग्रहण और पुनर्वितरण की अनुमति देता है। हालांकि, सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि यह जरूरी नहीं है कि प्रत्येक संसाधन, जो किसी व्यक्ति के स्वामित्व में है, उसे सार्वजनिक संसाधन माना जाए।
न्यायालय ने 42वें संविधान संशोधन अधिनियम के तहत किए गए प्रावधानों का भी उल्लेख किया। सीजेआई ने कहा कि अनुच्छेद 31 (सी) का असंशोधित रूप लागू रहेगा। 42वें संशोधन की धारा 4 का उद्देश्य अनुच्छेद 39 (बी) को निरस्त करना और प्रतिस्थापित करना था, लेकिन न्यायालय ने इसे सीमित कर दिया है।
1978 के फैसले को पलटा
सुप्रीम कोर्ट ने 1978 के एक ऐतिहासिक फैसले को पलट दिया, जिसमें न्यायमूर्ति कृष्णा अय्यर ने निजी व्यक्तियों की सभी संपत्तियों को सामुदायिक संपत्ति माना था। चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा कि यह निर्णय उन्नत समाजवादी आर्थिक विचारधारा के तहत दिया गया था, जो वर्तमान समय में अस्थिर और अप्रासंगिक है।
पीठ ने कहा कि उत्पादन के साधनों के साथ-साथ अन्य सामग्री भी अनुच्छेद 39 (बी) के दायरे में आ सकती हैं, लेकिन सभी निजी संपत्तियों को सार्वजनिक भलाई के लिए अधिग्रहण योग्य मान लेना न्यायसंगत नहीं होगा।
न्यायालय की दृष्टि और सार्वजनिक भलाई की सीमा
सीजेआई ने कहा कि यह आवश्यक है कि न्यायालय सार्वजनिक भलाई की परिभाषा को व्यावहारिक और संतुलित दृष्टिकोण से देखे। उन्होंने यह भी जोड़ा कि किसी भी संपत्ति को केवल इस आधार पर सामुदायिक संपत्ति नहीं माना जा सकता कि वह भौतिक आवश्यकताओं को पूरा करती है।
पीठ ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 39 (बी) के तहत राज्य को केवल उन्हीं संपत्तियों का अधिग्रहण करना चाहिए, जो सार्वजनिक भलाई के लिए आवश्यक हों। न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि किसी संपत्ति को सामुदायिक उपयोग के लिए अधिग्रहित करने से पहले इसके उद्देश्य और परिणाम का विश्लेषण करना चाहिए।
क्या है इस फैसले का असर?
इस फैसले के दूरगामी प्रभाव होंगे। राज्य सरकारों को अब संपत्तियों के अधिग्रहण के लिए ठोस तर्क और उचित प्रक्रिया अपनानी होगी। यह निर्णय व्यक्तिगत संपत्तियों के स्वामित्व के अधिकार को मजबूत करता है और यह सुनिश्चित करता है कि राज्य की शक्ति का दुरुपयोग न हो।
1978 के फैसले को पलटने के साथ, न्यायालय ने समाजवादी विचारधारा पर आधारित निर्णयों को पुनर्विचार के दायरे में ला दिया है। यह फैसला यह संकेत देता है कि न्यायालय संविधान की मूल भावना को ध्यान में रखते हुए, बदलते सामाजिक और आर्थिक परिप्रेक्ष्य में निर्णय लेगा।