सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को एक ऐतिहासिक फैसले में मानसिक दिव्यांग महिला को 50.87 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया। यह फैसला एक सड़क दुर्घटना में घायल हुई महिला के लिए था, जो अब 75 प्रतिशत मानसिक दिव्यांगता से ग्रस्त है। महिला के जीवन की गुणवत्ता को ध्यान में रखते हुए न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति के. वी. विश्वनाथन की पीठ ने इस मामले पर महत्वपूर्ण निर्णय दिया।
महिला का दर्दनाक हादसा और इसके परिणाम
यह मामला वर्ष 2009 का है, जब महिला मात्र सात साल की उम्र में एक सड़क दुर्घटना का शिकार हुई थी। महिला अपने परिवार के साथ घर जा रही थी, तभी तेज रफ्तार कार ने उसे टक्कर मार दी। इस दुर्घटना के कारण महिला को गंभीर चोटें आईं और उसकी मानसिक स्थिति स्थायी रूप से प्रभावित हो गई। दुर्घटना के बाद महिला का मानसिक विकास रुक गया और वह अब केवल कक्षा दो के स्तर तक ही शिक्षा प्राप्त कर सकती है।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने महिला की स्थिति को गंभीरता से लिया और दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा दिए गए 11.51 लाख रुपये के मुआवजे को नाकाफी माना। उच्चतम न्यायालय ने इसे लगभग पांच गुना बढ़ाकर 50.87 लाख रुपये कर दिया। इसमें महिला के आय के नुकसान, दर्द और पीड़ा, विवाह की संभावनाओं का समाप्त होना, परिचारक खर्च और भविष्य के चिकित्सा उपचार जैसे सभी पहलुओं को ध्यान में रखा गया।
कोर्ट ने कहा कि महिला का जीवन कभी सामान्य नहीं होगा। न केवल उसने अपना बचपन खोया है, बल्कि अब उसका वयस्क जीवन भी प्रभावित हो गया है। कोर्ट के अनुसार, विवाह और जीवनसाथी का होना हर व्यक्ति के जीवन का स्वाभाविक हिस्सा होता है, लेकिन महिला के लिए विवाह और बच्चों के पालन-पोषण का विचार अब लगभग असंभव हो गया है।
महिला के वकील का पक्ष
महिला के वकील ने अदालत में पेश किए गए चिकित्सा प्रमाण पत्र का हवाला देते हुए बताया कि महिला को 75 प्रतिशत बौद्धिक दिव्यांगता है। इसके कारण वह केवल कक्षा दो तक ही कौशल प्राप्त कर सकती है और किसी भी सामान्य जीवन के लिए सक्षम नहीं हो सकती। वकील ने उच्च न्यायालय के दृष्टिकोण को गलत करार दिया, जिसमें महिला को अंशकालिक परिचारिका की आवश्यकता बताई गई थी।
दिल्ली हाई कोर्ट का फैसला
दिल्ली हाई कोर्ट ने नवंबर 2017 में इस मामले में 11.51 लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश दिया था, लेकिन महिला के वकील ने इसे अपर्याप्त बताया और मामले को सुप्रीम कोर्ट में ले गए। सुप्रीम कोर्ट ने मुआवजे की राशि बढ़ाने का आदेश दिया, साथ ही यह भी कहा कि महिला जीवनभर किसी अन्य व्यक्ति पर निर्भर रहेगी।
सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय ने न केवल मुआवजे की राशि बढ़ाई, बल्कि यह भी स्पष्ट किया कि मानसिक दिव्यांगता से ग्रस्त व्यक्ति को समाज में जीवन जीने के लिए हर संभव सहारा और सहायता मिलनी चाहिए। कोर्ट ने कहा कि महिला की जीवनभर की स्थिति को ध्यान में रखते हुए मुआवजे की राशि में यह वृद्धि की गई है, ताकि महिला की भविष्यवाणी और चिकित्सा खर्चों को पूरा किया जा सके।