भारतीय संविधान का अनुच्छेद 142 सुप्रीम कोर्ट को कुछ विशेषाधिकार प्रदान करता है जो इसे न्याय सुनिश्चित करने के लिए विवेकाधीन शक्ति देता है। हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने इस अनुच्छेद का उपयोग करते हुए एक ऐसा फैसला सुनाया जो सामाजिक और कानूनी दृष्टिकोण से ऐतिहासिक माना जा रहा है। इस फैसले में एक गैर-दलित महिला और दलित पुरुष के विवाह को रद्द करते हुए कोर्ट ने बच्चों के अनुसूचित जाति (SC) प्रमाण पत्र जारी करने का आदेश दिया।
क्या है अनुच्छेद 142?
अनुच्छेद 142 सुप्रीम कोर्ट को ऐसी शक्ति देता है जिससे वह किसी भी मामले में न्याय प्रदान करने के लिए विशेष आदेश दे सकता है। इसका मुख्य उद्देश्य न्याय के हित में कार्य करना है, भले ही उस मामले में कोई विशेष कानून मौजूद न हो। यह अनुच्छेद न्यायालय को लचीलापन प्रदान करता है, जिससे वह न्याय के सिद्धांत को प्राथमिकता देते हुए फैसले ले सके।
इस अनुच्छेद के तहत सुप्रीम कोर्ट का निर्णय संविधान के अनुरूप होना चाहिए। कई ऐतिहासिक मामलों में इस अनुच्छेद का उपयोग सामाजिक बदलाव और कानून सुधार लाने के लिए किया गया है।
सुप्रीम कोर्ट का हालिया फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक दलित पुरुष और गैर-दलित महिला के तलाक मामले में यह फैसला सुनाया। कोर्ट ने महिला और पति के अलगाव को कानूनी मान्यता देते हुए यह निर्देश दिया कि उनके बच्चों को अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र जारी किया जाए।
फैसले के अनुसार, 11 वर्षीय बेटा और 6 वर्षीय बेटी, जो पिछले छह वर्षों से अपनी मां के साथ गैर-दलित परिवार में रह रहे हैं, सरकारी शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश और रोजगार के लिए अनुसूचित जाति माने जाएंगे।
जाति का निर्धारण और कोर्ट का रुख
सुप्रीम कोर्ट ने 2018 के अपने निर्णय को दोहराते हुए कहा कि जाति जन्म से निर्धारित होती है और किसी अनुसूचित जाति समुदाय के व्यक्ति से विवाह करके जाति बदली नहीं जा सकती। अदालत ने यह स्पष्ट किया कि गैर-दलित महिला को अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र नहीं दिया जा सकता, लेकिन उसके बच्चों को यह अधिकार मिल सकता है।
बच्चों के भविष्य के लिए उठाए गए कदम
सुप्रीम कोर्ट ने पिता को आदेश दिया कि वह छह महीने के भीतर दोनों बच्चों के लिए SC प्रमाण पत्र प्राप्त करे। इसके साथ ही पिता को बच्चों की स्नातकोत्तर स्तर तक की शिक्षा का पूरा खर्च वहन करने का आदेश दिया गया, जिसमें उनकी एडमिशन फीस, ट्यूशन फीस, बोर्डिंग और लॉजिंग का खर्च शामिल है।
महिला को मिला एकमुश्त समझौता
महिला को जीवनयापन के लिए पति द्वारा 42 लाख रुपये की एकमुश्त राशि दी गई। इसके अलावा, रायपुर में पति की एक ज़मीन का प्लॉट और अगले वर्ष तक महिला के लिए एक दोपहिया वाहन उपलब्ध कराने का आदेश भी दिया गया। अदालत ने दंपति के बीच दर्ज सभी क्रॉस-एफआईआर को रद्द कर दिया और यह निर्देश दिया कि महिला बच्चों को समय-समय पर उनके पिता से मिलने दे, ताकि उनका आपसी संबंध बेहतर बना रहे।
न्यायिक लचीलापन और सामाजिक बदलाव
इस फैसले ने अनुच्छेद 142 की शक्ति और इसके महत्व को एक बार फिर उजागर किया। यह न केवल बच्चों के अधिकारों की रक्षा करता है, बल्कि सामाजिक न्याय और समानता के सिद्धांत को भी मजबूत करता है। सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय ने साबित किया कि कानून सामाजिक बदलाव लाने का माध्यम बन सकता है।